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भारत की भूमि महान संतों, गुरुओं और योद्धाओं की भूमि मानी जाती है, जिन्होंने न केवल समाज को सही दिशा दी है बल्कि सत्य, धर्म और न्याय की स्थापना के लिए अपने जीवन को समर्पित किया ह। ऐसे ही महान गुरुओं में से एक गुरु थे गुरु गोविंद सिंह जी, जो सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे। हर साल गुरु गोविंद सिंह जयंती के उपलक्ष्य में मनाई जाती है। यह दिन उनके जीवन और उनके द्वारा स्थापित कई मूल्यों को याद करने और उनके प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करने का अवसर प्रदान करता है।
गुरु गोविंद सिंह जी का जन्म 22 दिसंबर 1666 को पटना साहिब (वर्तमान बिहार) में हुआ था। उनके बचपन का नाम गोविंद राय था। उनके पिता गुरु तेग बहादुर जी सिखों के नौवें गुरु थे, जिन्होंने कश्मीरी पंडितों और धर्म की रक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए। गुरु गोविंद सिंह जी ने अपने पिता के बलिदान से प्रेरणा लेकर हमारे धर्म, मानवता और न्याय की रक्षा का संकल्प लिया।
उन्होंने केवल 9 वर्ष की आयु में गुरु पद ग्रहण किया था। उनके जीवन का हर क्षण सिख धर्म, धार्मिक स्वतंत्रता, और समाज में समानता के लिए समर्पित था। साहस, वीरता और आध्यात्मिकता के अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किए था उन्होंने।
गुरु गोविंद सिंह जी का सबसे बड़ा योगदान था खालसा पंथ की स्थापना। उन्होंने 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी के दिन आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। खालसा पंथ का उद्देश्य सिख धर्म को नई पहचान देना और अपने अनुयायियों में साहस, बलिदान और धर्म की रक्षा का भाव जगाना।
भाई दया सिंह,
भाई धर्म सिंह,
भाई हिम्मत सिंह,
भाई मोहकम सिंह,
भाई साहिब सिंह
केश (बाल), कंघा (कंघा), कड़ा (लोहे का ब्रेसलेट), कच्छा (विशेष प्रकार का अंडरवियर), कृपाण (छोटी तलवार)
गुरु गोविंद सिंह जी ने समाज में अन्याय, भेदभाव और अत्याचार का कड़ा विरोध किया था। उन्होंने समानता, स्वतंत्रता और धार्मिक सहिष्णुता का संदेश दिया था लोगों को। उन्होंने यह स्पष्ट किया था कि सच्चा धर्म वह है जो मानवता की सेवा करता है और सत्य के मार्ग पर चलता है।
उनका यह कथन प्रसिद्ध है:
"चिड़ियों से मैं बाज लड़ाऊं, गिद्दरों को मैं शेर बनाऊं।"
गुरु गोविंद सिंह जी ने समाज में साहस और आत्मसम्मान का भाव जगाने का प्रयास किया था। उनके नेतृत्व में सिख समुदाय एक संगठित और सशक्त शक्ति के रूप में उभरा था।
गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन बहुत संघर्ष और बलिदान से भरा हुआ था। उन्होंने अपने चारों पुत्रों (चार साहिबजादों) को धर्म और न्याय की रक्षा के लिए बलिदान कर दिया था।
साहिबजादा अजीत सिंह और साहिबजादा जुझार सिंह चमकौर की लड़ाई में वीरगति को प्राप्त हुए थे।
साहिबजादा जोरावर सिंह और साहिबजादा फतेह सिंह को सरहिंद के नवाब ने जीवित दीवार में चुनवा दिया था।
गुरु गोविंद सिंह जी ने इन अपार कष्टों और व्यक्तिगत हानियों को सहते हुए भी अपने कर्तव्यों का पालन किया था और अपने अनुयायियों को धर्म के मार्ग पर डटे रहने की प्रेरणा दी।
गुरु गोविंद सिंह जी केवल योद्धा ही नहीं, बल्कि एक महान कवि और लेखक भी थे। उन्होंने अपने लेखन के माध्यम से सिख धर्म के सिद्धांतों को स्पष्ट किया था। उनके द्वारा रचित ग्रंथों में दशम ग्रंथ और जफरनामा प्रमुख हैं। जफरनामा फारसी में लिखा गया था, जो की मुगल शासक औरंगजेब को संबोधित एक पत्र था।
उनकी रचनाएँ न केवल धार्मिक बल्कि समाज सुधार और प्रेरणा का स्रोत भी हैं।
उनकी शिक्षाएँ आज भी अत्यंत प्रासंगिक हैं। गुरु गोविंद सिंह जी की कुछ प्रमुख शिक्षाएँ निम्नलिखित हैं:
सर्व धर्म समानता: सभी धर्मों का आदर करें और भेदभाव से बचें।
साहस और बलिदान: अपने धर्म और सत्य की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार का बलिदान देने के लिए तैयार रहें।
समानता: जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर भेदभाव न करें।
सेवा भावना: मानवता की सेवा करना सबसे बड़ा धर्म है।
गुरु गोविंद सिंह जयंती सिख समुदाय के लिए विशेष महत्व रखती है। इस दिन लोग गुरुद्वारों में विशेष कीर्तन करते है और पाठ, अरदास करते हैं। उनके जीवन और बलिदानों को याद करके उनके दिखाए मार्ग पर चलने का संकल्प लिया जाता है।
इस दिन गुरु गोविंद सिंह जी की शिक्षाओं को अपनाने और समाज में समानता, भाईचारा और धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा देने का प्रयास किया जाता है।
गुरु गोविंद सिंह जी न केवल सिख धर्म के एक महान गुरु थे, बल्कि मानवता के लिए एक प्रकाशपुंज थे। उनका जीवन लोगो के लिए साहस, बलिदान, सेवा और समानता का प्रतीक है। उनकी शिक्षाएँ आज भी समाज को दिशा देने कार्य कर रही है सत्य, धर्म और न्याय की रक्षा के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं।
गुरु गोविंद सिंह जयंती हमें यह संदेश देती है कि हमें अपने जीवन में उनकी शिक्षाओं को अपनाना चाहिए और समाज में धर्म, समानता और सद्भाव का संचार करना चाहिए।
"वाहेगुरु जी का खालसा, वाहेगुरु जी की फतेह।"
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