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नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा के प्रथम स्वरूप शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। शैलपुत्री माता पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं, जिनके नाम का अर्थ ही ‘शैल’ यानी पर्वत और ‘पुत्री’ यानी बेटी है। इनका यह स्वरूप शुद्धता, शांति और प्रकृति से जुड़ाव का प्रतीक है। माँ शैलपुत्री का यह रूप शक्ति और साहस का परिचायक है, जो भक्तों को जीवन के कठिन रास्तों पर अडिग रहने का संदेश देता है।
माँ शैलपुत्री का दिव्य स्वरूप अत्यंत मनोहर और सौम्य है। वे अपने एक हाथ में त्रिशूल और दूसरे हाथ में कमल का फूल धारण करती हैं। उनके माथे पर चंद्र का मुकुट सुशोभित होता है और उनका वाहन वृषभ (बैल) है, जिस कारण इन्हें वृषारूढ़ा देवी भी कहा जाता है। शैलपुत्री माता का यह रूप शक्ति, साधना और साहस का प्रतीक है।
शैलपुत्री माता की कथा के अनुसार, ये पूर्वजन्म में राजा दक्ष की पुत्री सती थीं, जिन्होंने भगवान शिव से विवाह किया था। एक बार राजा दक्ष ने एक यज्ञ का आयोजन किया, जिसमें उन्होंने भगवान शिव का अपमान किया। सती अपने पति का अपमान सहन न कर सकीं और यज्ञ की अग्नि में कूदकर अपने प्राण त्याग दिए। अगले जन्म में सती ने शैलराज हिमालय के घर में जन्म लिया और शैलपुत्री के रूप में पूजित हुईं। इस जन्म में भी उन्होंने कठोर तपस्या करके भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया।
नवरात्रि के पहले दिन शैलपुत्री माता की पूजा की जाती है। इस दिन भक्तगण सुबह स्नान करके शुद्ध वस्त्र धारण करते हैं और देवी की प्रतिमा या चित्र के सामने दीपक जलाते हैं। माता को सफेद फूल, चंदन, अक्षत और धूप-दीप अर्पित किया जाता है। शैलपुत्री माता को गाय का घी बहुत प्रिय है, अतः इस दिन उन्हें घी का भोग लगाना चाहिए। ऐसा करने से भक्तों को निरोगी जीवन और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
शैलपुत्री माता की आराधना से जीवन में स्थिरता, धैर्य और शक्ति का संचार होता है। माता का यह रूप हमें आत्मविश्वास और दृढ़ता प्रदान करता है, जिससे हम जीवन की चुनौतियों का सामना साहस और संयम के साथ कर सकें। उनकी पूजा से मानसिक शांति, शारीरिक शक्ति और आध्यात्मिक जागरूकता का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, शैलपुत्री माता की पूजा से चंद्र ग्रह की स्थिति मजबूत होती है। चंद्रमा मन और भावना का कारक ग्रह है, जो हमारे मानसिक और भावनात्मक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है। जिन लोगों की कुंडली में चंद्रमा कमजोर होता है या चंद्र दोष होता है, उन्हें शैलपुत्री माता की आराधना से विशेष लाभ प्राप्त होता है। इससे मानसिक शांति और संतुलन बना रहता है और भावनात्मक स्थिरता प्राप्त होती है।
नवरात्रि के पहले दिन की पूजा का विशेष महत्व है, क्योंकि यह शक्ति के आरंभ का प्रतीक है। शैलपुत्री माता की आराधना से जीवन में एक नई ऊर्जा और शक्ति का संचार होता है, जो हमें सही दिशा में आगे बढ़ने का मार्ग दिखाती है। यह दिन शुद्धता और साधना का प्रतीक है, जिससे व्यक्ति को आत्मिक बल और मानसिक स्थिरता प्राप्त होती है।
नवरात्रि का पहला दिन शैलपुत्री माता की आराधना के लिए समर्पित है। उनकी पूजा से व्यक्ति के जीवन में शक्ति, शांति और साहस का संचार होता है। माँ शैलपुत्री की कृपा से जीवन में स्थिरता, धैर्य और आत्मविश्वास प्राप्त होता है। नवरात्रि के इस पहले दिन शैलपुत्री माता की उपासना कर हम सभी को उनकी अनुकंपा और आशीर्वाद प्राप्त कर अपने जीवन को सुखमय और समृद्ध बना सकते हैं।
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