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नवरात्रि के नौ दिनों में देवी के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जिनमें से छठे दिन माँ कात्यायनी की आराधना होती है। माँ कात्यायनी को देवी दुर्गा का योद्धा रूप माना जाता है, जो बुराई और असुरों का नाश करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनका यह रूप अत्यंत शक्तिशाली, साहसिक और दृढ़ संकल्प से भरा हुआ है। नवरात्रि के दौरान, भक्त माँ कात्यायनी से साहस, विजय और सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं।
माँ कात्यायनी का नाम प्रसिद्ध ऋषि कात्यायन के नाम पर पड़ा। पौराणिक कथा के अनुसार, जब महिषासुर नामक राक्षस ने पृथ्वी और स्वर्ग लोक में अत्याचार फैलाया, तब देवी पार्वती ने महिषासुर का अंत करने के लिए कात्यायनी रूप धारण किया। ऋषि कात्यायन ने अपनी तपस्या के द्वारा देवी दुर्गा से प्रार्थना की कि वह उनकी पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ कात्यायनी ने ऋषि की तपस्या से प्रसन्न होकर उनके घर में अवतरित होकर महिषासुर का वध किया और देवताओं को मुक्ति दिलाई।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत तेजस्वी और प्रभावशाली है। उनका रंग स्वर्णिम चमक से युक्त है। वे चार भुजाओं वाली देवी हैं, जिनके एक हाथ में तलवार, दूसरे हाथ में कमल का फूल होता है। बाकी दो हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में होते हैं। माँ कात्यायनी का वाहन सिंह है, जो उनके साहस और शक्ति का प्रतीक है।
माँ कात्यायनी की पूजा से व्यक्ति में निडरता, आत्मविश्वास और समर्पण की भावना जागृत होती है। खासकर उन लोगों के लिए, जो अपने जीवन में चुनौतियों का सामना कर रहे हैं या किसी भी प्रकार के असुरों जैसे भय, संदेह और असफलता से घिरे हुए हैं, माँ कात्यायनी की पूजा उन्हें इन समस्याओं से मुक्त करने वाली मानी जाती है। उनके आशीर्वाद से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होता है।
ज्योतिषशास्त्र के अनुसार, माँ कात्यायनी की आराधना से कुंडली के ग्रह दोषों का निवारण होता है, खासकर अगर व्यक्ति की कुंडली में मंगल दोष या विवाह में बाधाएँ आ रही हों। माना जाता है कि माँ कात्यायनी की कृपा से वैवाहिक जीवन में सुख-शांति और सौहार्द की प्राप्ति होती है।
नवरात्रि के छठे दिन, माँ कात्यायनी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। भक्त सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और स्वच्छ वस्त्र धारण कर पूजा के लिए तैयार होते हैं। माँ की मूर्ति या चित्र के सामने घी का दीपक जलाकर उन्हें लाल पुष्प, खासकर गुलाब, चढ़ाए जाते हैं। माँ को शहद का भोग लगाने का विशेष महत्व है। पूजा में दुर्गा सप्तशती का पाठ करना अत्यंत फलदायी माना जाता है।
माँ कात्यायनी की साधना से आध्यात्मिक उन्नति के साथ-साथ सांसारिक जीवन में भी सफलता प्राप्त होती है। भक्त अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए माँ की आराधना करते हैं। माँ कात्यायनी को नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है और उनकी साधना से महिलाओं को विशेष लाभ मिलता है, खासकर अगर वे अपने जीवन में किसी प्रकार की असमानता या चुनौती का सामना कर रही हों।
माँ कात्यायनी की कृपा पाने के लिए निम्नलिखित मंत्र का जाप करना अत्यंत लाभकारी होता है:
“ॐ कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि। नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नमः॥”
इस मंत्र का जाप नवरात्रि के दौरान या माँ कात्यायनी की आराधना करते समय करना चाहिए। इससे मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है और साधक के जीवन में सुख, समृद्धि और शांति का वास होता है।
माँ कात्यायनी की आराधना न केवल भक्तों को आंतरिक शक्ति और साहस प्रदान करती है, बल्कि उनके जीवन में आने वाली सभी बाधाओं को भी समाप्त करती है। नवरात्रि के छठे दिन माँ कात्यायनी की पूजा का विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन उनके भक्त उनकी कृपा से अपने जीवन के कठिन संघर्षों से उबरकर विजय प्राप्त करते हैं।
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