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Amalalki Ekadashi 2024: फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस एकादशी को आंवला एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्रीहरि विष्णु की आराधना के सहित आंवले की पूजा करने का विधान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सच्चे मन से आमलकी एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को अमलकी एकादशी के नाम से जाना जाता है। सामान्यत: यह तिथि फरवरी से मार्च के बीच में होती है। अमलकी एकादशी का उत्सव 20 मार्च 2024 को मनाया जाएगा। यह दिन बुधवार है। अमलकी एकादशी का शुभ समय 20 मार्च 2024 को रात 12:30 बजे से शुरू होकर 21 मार्च 2024 को सुबह 02:20 बजे तक है। इस अवधि के दौरान आप सभी भक्तों को धार्मिक विचार-विचार में होना चाहिए।
अमलकी एकादशी: बुधवार, 20 मार्च 2024 से 21 मार्च
व्रत पारणा का समय - सुबह 06:44 बजे से लेकर 09:03 बजे तक
पारणा तिथि पर द्वादशी समाप्त होती है - 11:43 बजे
एकादशी तिथि प्रारंभ - 20 मार्च 2024, रात 12:23 बजे
एकादशी तिथि समाप्त - 21 मार्च 2024, रात 02:21 बजे
मान्यताओं के अनुसार आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु के साथ आंवले के पेड़ की पूजा करना अति शुभ होता है। कहा जाता है कि भगवान विष्णु ने सृष्टि की रचना के वक्त आंवले को पेड़ के रूप में प्रतिष्ठित किया था। इसी कारणवश आंवले के पेड़ में ईश्वर का वास माना गया है और इसलिए आमलकी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा आंवले के पेड़ के नीचे बैठकर की जाती है। शास्त्रों के अनुसार आमलकी एकादशी करने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस व्रत का पुण्य एक हजार गौदान के फल के समान होता है।
प्राचीन काल में चित्रसेन नामक एक राजा रहता था। वह बहुत ही धार्मिक और सत्यप्रिय था। उसके समस्त राज्य में एकादशी के व्रत का बहुत महत्व था। राजा सहित सारी प्रजा एकादशी के व्रत को बड़े ही श्रद्धा भाव और विधि-विधान से किया करते थे। राजा बड़े ही निष्ठा से आमलकी एकादशी का व्रत किया करता था।
एक समय राजा शिकार करते-करते जंगल में बहुत दूर चला गया। उसी समय कुछ डाकू राजा को चारों ओर से घेर कर अपने अस्त्र-शस्त्र से प्रहार करने लगे। परंतु जब भी डाकू अपने शस्त्र से राजा पर प्रहार करते वह शस्त्र ईश्वर की कृपा से पुष्प में बदल जाते। अधिक डाकुओं की संख्या होने के कारण राजा बेहोश होकर गिर पड़ा। उसी वक्त राजा के शरीर से एक दिव्य शक्ति प्रकट हुई और उसने सारे डाकुओं को मार गिराया, जिसके बाद वह अदृश्य हो गई।
राजा को जब होश आया तो उसने चारों ओर मरे हुए डाकुओं को पाया। यह देखकर वह अत्यंत आश्चर्यचकित हो गया। राजा के मन में यह विचार आया कि इन डाकुओं को किसने मारा। तभी आकाशवाणी हुई कि हे राजन! तुम्हारे आमलकी एकादशी व्रत करने के प्रभाव से इन दुष्टों का नाश हुआ है। तुम्हारे शरीर से उत्पन्न आमलकी एकादशी की वैष्णवी शक्ति ने इन दुष्टों का वध किया है। इनका वध कर वह पुनः तुम्हारे शरीर में प्रवेश कर गई। यह सुनकर राजा को अत्यंत प्रसन्नता हुई एवं एकादशी के व्रत के प्रति उसकी श्रद्धा और भी बढ़ गई। तब राज्य में वापस लौटकर राजा ने सभी को एकादशी के व्रत के महत्व के बारे में बताया।
• एकादशी से 1 दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन ग्रहण ना करें।
• एकादशी के दिन प्रात: काल उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण कर ले।
• इसके पश्चात भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लें।
• इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करें अथवा उनके सामने घी का दीपक जलाएं।
• इसके पश्चात भगवान विष्णु को आंवला प्रसाद के स्वरूप में अर्पित करें।
• पूजा हो जाने के बाद आंवले के वृक्ष के नीचे नवरत्न युक्त कलश स्थापित करें।
• धूप, दीप, रोली, चंदन आदि से आंवले के वृक्ष की पूजा करें।
• पूजा के बाद ब्राह्मण एवं जरूरतमंद लोगों को भोजन कराएं।
• अगले दिन यानी द्वादशी के दिन सुबह उठकर स्नान कर ले एवं स्नान करने के पश्चात भगवान विष्णु की पूजा करें।
• इसके बाद शुभ मुहूर्त पर पारण कर लें।
• यदि संभव हो तो इस दिन गरीबों में दान जरूर करें क्योंकि इससे अत्यंत पुण्य की प्राप्ति होती है।
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