>
असम राज्य के गुवाहाटी शहर में स्थित कामाख्या मंदिर में प्रतिवर्ष आयोजित होने वाला अंबुबाची मेला एक विशेष धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है। यह मेला हिंदू कैलेंडर के अनुसार हर साल जून महीने में आयोजित होता है और इसे भारत के सबसे बड़े तांत्रिक मेलों में से एक माना जाता है। इस लेख में हम अंबुबाची मेला की पृष्ठभूमि, महत्व, मान्यताएं और इसके आयोजनों पर विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे।
अंबुबाची मेला मां कामाख्या देवी के रजस्वला (मासिक धर्म) की अवधि को चिह्नित करता है। कामाख्या देवी को शक्तिपीठों में से एक माना जाता है और उन्हें स्त्रीत्व और प्रजनन शक्ति का प्रतीक माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इस अवधि में देवी पृथ्वी को भी अपने गर्भ में लेती हैं और सृष्टि की पुनर्नवीनता का संकेत देती हैं।
अंबुबाची मेले के दौरान, मंदिर के गर्भगृह को तीन दिनों के लिए बंद कर दिया जाता है। इन तीन दिनों को ‘अंबुबाची’ कहा जाता है, जिसके दौरान कोई भी धार्मिक अनुष्ठान नहीं किए जाते। चौथे दिन, मंदिर को शुद्धिकरण के बाद फिर से खोल दिया जाता है, जिसे ‘निवृत्ति’ कहते हैं। इस दिन को ‘महास्नान’ के रूप में भी जाना जाता है, जहां भक्त देवी के आशीर्वाद के लिए इकट्ठा होते हैं।
अंबुबाची मेले के दौरान कामाख्या मंदिर के परिसर में विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। इसमें तांत्रिक अनुष्ठान, भजन-कीर्तन, और विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक प्रदर्शन शामिल होते हैं। मेला स्थल पर भक्तों के लिए भंडारे का आयोजन भी किया जाता है, जहां उन्हें मुफ्त में भोजन परोसा जाता है।
अंबुबाची मेला में हर साल लाखों की संख्या में भक्त आते हैं। इनमें से कई भक्त दूर-दूर से पैदल यात्रा करके आते हैं। मेले में शामिल होने वाले लोग अपने अनुभवों को साझा करते हैं और देवी का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए लंबी कतारों में खड़े होते हैं। उनके अनुसार, अंबुबाची मेला एक आध्यात्मिक यात्रा है जो उन्हें अद्वितीय शांति और संतोष का अनुभव कराती है।
अंबुबाची मेला न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी एक बड़ा योगदानकर्ता है। मेले के दौरान, गुवाहाटी शहर में होटल, रेस्टोरेंट, और अन्य व्यवसायों में भारी भीड़ होती है। यह मेला स्थानीय हस्तशिल्प और व्यापारियों के लिए भी एक बड़ा अवसर प्रदान करता है।
अंबुबाची मेला भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है जो तांत्रिक परंपराओं और मातृशक्ति की पूजा को दर्शाता है। यह मेला केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह लोगों के बीच सांस्कृतिक और सामाजिक जुड़ाव को भी प्रोत्साहित करता है। कामाख्या मंदिर में आयोजित होने वाला यह मेला हर साल लाखों भक्तों को एक अनोखे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक अनुभव का अवसर प्रदान करता है।
इस प्रकार, अंबुबाची मेला न केवल असम बल्कि पूरे भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक परिदृश्य का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसका महत्व और प्रभाव न केवल धार्मिक दृष्टिकोण से बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
स्वामी विवेकानंद जयंती हम हर साल 12 जनवरी को मनाते है। यह दिन स्वामी विवेकानंद के जीवन, शिक्षाओं और उनके प्रेरणादायक विचारों को स्मरण को दसराता है ...
त्रैलंग स्वामी जीवन में, साधना और शिक्षाओं का हर पहलू हम सभी को आत्मा और परमात्मा के रहस्यों को समझने की प्रेरणा देता है। हर साल यह त्रैलंग स्वामी जयं...
गुरु गोविंद सिंह जी, जो सिख धर्म के दसवें और अंतिम गुरु थे। हर साल गुरु गोविंद सिंह जयंती के उपलक्ष्य में मनाई जाती है।...