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हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही महर्षि वेदव्यास का जन्म हुआ था। वेदव्यास ने मानव जाति को चारों वेदों के ज्ञान से अवगत कराया था। साथ ही उन्होंने हिंदू धर्म के महान ग्रंथ महाभारत की रचना की थी। हिंदू धर्म में महर्षि वेदव्यास का बहुत बड़ा योगदान और प्रभाव रहा। इसलिए आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है और इस पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है। आषाढ़ पूर्णिमा पर गुरुओं की पूजा की जाती है। आषाढ़ पूर्णिमा का व्रत रखने वाले व्यक्ति इस दिन भगवान विष्णु की आराधना करते हैं एवं सत्यनारायण कथा का श्रवण करते हैं।
हिंदू धर्म में आषाढ़ पूर्णिमा का विशेष महत्व है। इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में भी मनाया जाता है। हिंदू धर्म में गुरुओं को विशेष स्थान प्राप्त है। गुरु पूर्णिमा के दिन गुरु की पूजा की जाती है। साथ ही इस दिन भगवान श्री हरि विष्णु की आराधना की जाती है। इस तिथि को सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती है। आषाढ़ पूर्णिमा के दिन दान का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है। कुल मिलाकर यह पूर्णिमा धार्मिक दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण एवं विशेष माना गया है।
आषाढ़ पूर्णिमा व्रत विधि
• इस दिन सुबह जल्दी उठकर किसी पवित्र नदी में स्नान कर लेना चाहिए। यदि किसी पवित्र नदी में स्नान करना संभव ना हो तो पानी में गंगाजल का कुछ अंश मिलाकर स्नान कर ले।
• इसके पश्चात सूर्य मंत्र का उच्चारण करते हुए सूर्यदेव को अर्घ्य दें।
• इसके बाद पूर्णिमा व्रत का संकल्प लें।
• इसके बाद भगवान विष्णु का पूजन तुलसी, धूप, दीप, गंध, फूल एवं फल से करें।
• इस दिन काले तिल का दान करना बहुत ही शुभ माना गया है इसलिए काले तिल का दान करें।
• पूजा के दौरान सतनारायण कथा का पाठ एवं श्रवण करें।
• साथ ही इस दिन गरीब और ब्राह्मणों को भोजन कराने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है इसलिए यदि संभव हो तो ब्राह्मण एवं जरूरतमंद को भोजन कराएं।
• वर्ष 2024 में आषाढ़ पूर्णिमा 21 जुलाई, रविवार के दिन मनाई जाएगी।
• पूर्णिमा तिथि 21 जुलाई, 2024, शनिवार को शाम 06:00 बजे आरंभ होगी एवं 21 जुलाई, 2024, रविवार को शाम 03:47 pm बजे समाप्त होगी।
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