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धनु राशि (Saggitarius) का स्थान राशि चक्र और तारामंडल में नौवें स्थान पर है। धनु राशि पूर्व दियाा में वास करने वाली पृष्ठोदयी राशि है। तारामंडल में धनु राशि का प्रारंभ 241 डिग्री से लेकर 270 डिग्री के अंतर्गत होता है। धनु राशि की आकृति सिर से कमर तक मनुष्य और उसके नीचे का भाग घोड़े के समान माना गया है जो हाथ में धनुष धारण किए है। धनु राशि द्विस्वभाव संज्ञक और क्रूर प्रकृति की अग्नि तत्व राशि मानी गई है। धनु राशि (Dhanu Rashi) का स्वामी बृहस्पति है तथा इसका वर्ण पीला है। कालपुरुष के शरीर में धनु राशि का स्थान उरु जंघा में कहा गया है। इसका निवास स्थान हाथी, घोड़ा गाड़ी, रथ आदि और उनके समान स्थान में है। धनु राशि पुरुष लिंग, सम और क्रूर राशि है।
धनु राशि के दो होरा हैं। पहली होरा 15 अंश की और दूसरी होरा 15 अंश की है। पहली होरा के स्वामी सूर्य और दूसरी होरा के स्वामी चंद्रमा हैं। इसी तरह धनु राशि के तीन द्रैष्काण हैं। एक द्रैष्काण दस डिग्री का होता है। तो कुल मिलाकर तीनों द्रैष्काण में तीस डिग्री की पूरी राशि आ जाती है। धनु राशि के पहले द्रैष्काण के स्वामी बृहस्पति हैं और दूसरे द्रैष्काण के स्वामी मंगल तथा तीसरे द्रैष्काण के स्वामी सूर्य हैं।
धनु राशि (Saggitarius) के 7 सप्तमांश होते हैं। पहला सप्तमांश का स्वामी बृहस्पति, दूसरे सप्तमांश के स्वामी शनि, तीसरे के भी शनि, चौथे के बृहस्पति, पांचवे के मंगल, छठे के शुक्र, सातवें के स्वामी बुध को कहा गया है।
इसी क्रम में धनु राशि के 9 नवमांश होते हैं। एक नवमांश 3 अंश का और 20 विकला के होते हैं। पहले नवमांश का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल और नौवें का बृहस्पति स्वामी है। इसी तरह धनु राशि के 10 दशमांश होते हैं। प्रत्येक दशमांश 3 अंश का होता है। पहले दशमांश का स्वामी बृहस्पति, दूसरे का शनि, तीसरे का भी शनि, चौथे का बृहस्पति, पांचवे का मंगल, छठे का शुक्र, सातवें का बुध, आठवें का चंद्रमा, नौवें का सूर्य, दसवें का स्वामी बुध को कहा गया है। अब आते हैं धनु राशि के द्वादशांश की ओर।
धनु राशि (Saggitarius) के 12 द्वादशांश होते हैं। प्रत्येक द्वादशांश 2 अंश और 30 कला के हैं। पहले द्वादशांश का स्वामी बृहस्पति, दूसरे का शनि, तीसरे का भी शनि, चौथे का बृहस्पति, पांचवे का मंगल, छठे का शुक्र, सातवें का बुध, आठवें का चंद्रमा, नौवें का सूर्य, दसवें का स्वामी बुध, ग्यारहवें का शुक्र और बारहवें का स्वामी मंगल है। अगला है धनु राशि (Dhanu Rashi) के 16 षोडशांश। एक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला के होते हैं। धनु राशि के पहले षोडशांश का स्वामी बृहस्पति, दूसरे का शनि, तीसरे का भी शनि, चौथे का बृहस्पति, पांचवे का मंगल, छठे का शुक्र, सातवें का बुध, आठवें का चंद्रमा, नौवें का सूर्य, दसवें का स्वामी बुध, ग्यारहवें का शुक्र, बारहवें का स्वामी मंगल, तेरहवें का स्वामी बृहस्पति, चौदहवें का शनि, पंद्रहवें का भी शनि और सोलहवें का स्वामी बृहस्पति है।
धनु राशि के 5 त्रिशांश होते हैं। पहला त्रिशांश 5 अंश का और इसके स्वामी मंगल हैं। दूसरा त्रिशांश 5 अंश का और इसके स्वामी शनि हैं। तीसरा त्रिशांश 8 अंश का और इसके स्वामी बृहस्पति हैं। चौथा त्रिशांश 7 अंश का और इसके स्वामी बुध हैं। अब आते हैं धनु राशि के पांचवे त्रिशांश पर जिसके 5 अंश हैं और इसके स्वामी शुक्र हैं।
धनु राशि (Saggitarius) के 60 षष्ट्यंस होते हैं। एक षष्ट्यंस 30 कला अर्थात आधा अंश का होता है। इनके स्वामी कुछ इस प्रकार हैं। पहला घोर, दूसरा राक्षस, तीसरा देव, चौथा कुबेर, पांचवा यक्ष, छठा किन्नर, सातवां भ्रष्ट, आठवां कुलघ्न, नौवां गरल, दसवां अग्नि, 11वां माया, 12वां यम, 13वां वरुण, 14वां इंद्र, 15वां कला, 16वां सर्प, 17वां अमृत, 18वां चंद्र, 19वां मिर्दु, 20वां कोमल, 21वां पद, 22वां विष्णु, 23वां वागीश, 24वां दिगंबर, 25वां देव, 26वां आर्द्र, 27वां कलिनाश, 28वां क्षितिज, 29वां मलकर, 30वां मन्दात्मज, 31वां मृत्यु, 32वां काल, 33वां दावाग्नि, 34वां घोर, 35वां अधम, 26वां कंटक, 27वां सुधा, 38वां अमृत, 39वां पूर्णचंद्र, 40वां विश्दाग्ध, 41वां कुलनाश, 42वां मुख्या, 43वां वन्शछय, 44वां उत्पात, 45वां कालरूप, 46वां सौम्य, 47वां मृदु, 48वां सुशीतल, 49वां दृष्टकराल, 50वां इंदुमुख, 51वां प्रवीण, 52वां कालाग्नि, 53वां दंडायुत, 54वां निर्मल, 55वां शुभ, 56वां अशुभ, 57वां अतिशित, 58वां सुधासयो, 59वां भ्रमण, 60वां इंदुरेखा। धनु राशि के ये सभी 60 षष्ट्यंस अपने नाम के अनुसार शुभ और अशुभ फल जातक को प्रदान करते हैं।
धनु राशि (Saggitarius) में सत्ताइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण मूल से उत्तराषाढ़ तक जिसमें कि मूल नक्षत्र के चार चरण जिसके वर्ण अक्षर हैं। मूल 1 ये, 2 यो, 3 भा, 4 भी, पूर्वाषाढ़ 1 भू, 2 ध, 3 फ, 4 ढ़, उत्तराषाढ़ 1 भे। ये नौ चरण धनु राशि के हैं और प्रत्येक चरण 3।20 डिग्री का है। सभी चरणों के नक्षत्र स्वामी भी बृहस्पति के साथ अलग-अलग होते हैं। धनु राशि रात के प्रहर में सबसे अधिक बलशाली होता है अत: इसे रात्रिबलि राशि भी कहते हैं।
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