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कामदा एकादशी (Kamada Ekadashi) चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में मनाई जाने वाली एक पवित्र हिंदू व्रत है। यह हिंदू नव वर्ष की पहली एकादशी होती है। इस एकादशी के दिन को भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की आराधना करने के लिए उत्तम माना जाता है। यह एकादशी भगवान विष्णु को समर्पित है। हिंदू धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, कामदा एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति की सारी मनोकामनाएं पूरी होती है अथवा इस व्रत के प्रभाव से उस व्यक्ति के पापों का भी नाश होता है।
कामदा एकादशी की तिथि: शुक्रवार, 19 अप्रैल, 2024 को।
पारण (उपवास खोलने) का समय - 01:40 बजे से 04:10 बजे तक।
पारण तिथि के हरि वासर - 10:50 बजे
एकादशी तिथि शुरू होती है - 18 अप्रैल, 2024 को 05:35 बजे शाम
एकादशी तिथि समाप्त होती है - 19 अप्रैल, 2024 को 08:05 बजे रात्रि
कामदा एकादशी हिंदू धर्म का एक बहुत ही महत्वपूर्ण दिन है। इस दिन भगवान वासुदेव की कृपा पाने के लिए उनकी पूजा किया जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जो भक्त पूरी श्रद्धा एवं विधि-विधान के साथ कामदा एकादशी का व्रत करता है उसकी सारी इच्छाएं पूर्ण हो जाती है। मान्यताओं के अनुसार, यह भी कहा गया है कि यदि सुहागन स्त्रियां कामदा एकादशी का व्रत रखती हैं तो उन्हें अत्यंत सौभाग्य की प्राप्ति होती है। यदि कामदा एकादशी के व्रत को सच्चे मन एवं श्रद्धा से किया जाए तो सारे पापों से मुक्ति मिलती है एवं कष्टों का निवारण होता है।
एक समय की बात है जब धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से चैत्र शुक्ल पक्ष की एकादशी के महत्व के बारे में पूछा, श्री कृष्ण ने कहा कि 'हे धर्मराज! इसी कथा की महिमा को वशिष्ठ मुनि ने पूर्व राजा दिलीप को सुनाई थी जो मैं अब तुम्हें कहने जा रहा हूं।
प्राचीन समय में भोगीपुर नामक एक नगर था। इस नगर में पुंडरीक नामक राजा राज करता था। यह नगर बहुत ही वैभवशाली और संपूर्ण था। इस नगर में अनेक अप्सरा, किन्नर और गंधर्व वास करते थे। वहां ललिता नाम की एक अतिसुंदर अप्सरा अपने पति ललित नामक गंधर्व के साथ रहती थी। दोनों के बीच अत्यंत प्रेम था और एक दूसरे के बगैर दोनों व्याकुल हो जाते थे।
एक बार राजा पुंडरीक के दरबार में अन्य गंधर्वों के साथ ललित भी गान कर रहा था। गाते गाते उसे अपनी पत्नी ललिता की याद आ गई और ध्यान भटकने के कारण ललित का उसके स्वर पर नियंत्रण नहीं रहा। सभा में मौजूद कर्कोटक नामक एक नाग ने ललित के स्वर बिगड़ने को भांप लिया और यह बात राजा पुंडरीक को बता दी। यह बात सुनकर राजा पुंडरीक को क्रोध आया और क्रोध में उसने ललित को राक्षस बनने का श्राप दे दिया।
पुंडरीक के श्राप से ललित उसी क्षण एक विशालकाय राक्षस बन गया। ललित राक्षस बनके वन में घूमने लगा और वहां उसने बहुत सारी दुखो का सामना किया। जब यह बात ललिता को पता चली तो वह अत्यंत दुखी हुई और वह अपने पति के पीछे-पीछे जंगल में घूमने लगी। वन में भटकती हुई ललिता अपने पति के कष्टों के निवारण का उपाय ढूंढने लगी। भटकते भटकते ललिता को एक सुंदर आश्रम दिखा जहां एक मुनि बैठे हुए थे। ललिता आश्रम में गई और मुनि को अपनी व्यथा बताई। ललिता की व्यथा सुनकर मुनि को दया आ गई और उन्होंने ललिता को कामदा एकादशी व्रत करने को कहा। मुनि का आशीर्वाद पाकर गंधर्व पत्नी ने श्रद्धापूर्वक कामदा एकादशी का व्रत किया। कामदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से ललित को श्राप से मुक्ति मिल गई और वह अपने पुराने सुंदर रूप में आ गया।
• दशमी के दिन यानी एकादशी व्रत से एक दिन पहले सूर्यास्त के बाद भोजन ना करें।
• कामदा एकादशी के व्रत को पूरे दिन रखा जाता है और उस दिन एक भी बूंद पानी ग्रहण नहीं किया जाता है।
• एकादशी के व्रत की शुरुआत सूर्य देवता को प्रणाम करने से होती है।
• व्रत के दिन सुबह-सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के पश्चात स्वच्छ वस्त्रों को धारण किया जाता है।
• वस्त्र धारण करने के पश्चात गंगाजल छिड़क कर पूजा स्थल को पवित्र किया जाता है।
• इसके बाद एक लकड़ी की चौकी लेकर उसपर पीला कपड़ा बिछाया जाता है।
• उस चौकी पर भगवान विष्णु की मूर्ति लेकर उन्हें स्थापित किया जाता है।
• इसके बाद हाथ में जल लेकर भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए व्रत का संकल्प लिया जाता है।
• इसके बाद भगवान की मूर्ति के सामने हाथों को जोड़कर भगवान को प्रणाम किया जाता है और उन्हें हल्दी, अक्षत, चंदन तथा फल-फूल चढ़ाए जाते हैं।
• फिर भगवान की मूर्ति को रोली से टिका करके पंचामृत अर्पित किया जाता है।
• भगवान विष्णु को तुलसी बहुत प्रिय है इसलिए उन्हें तुलसी के पत्ते भी चढ़ाए जाते हैं।
• इसके बाद एकादशी के कथा की पाठ की जाती है और प्रभु को भोग अर्पित किया जाता है।
• ऐसा माना जाता है कि भगवान तुलसी के बिना भोग को ग्रहण नहीं करते हैं इसलिए श्रीहरि को भोग लगाते समय तुलसी का पत्ता जरूर चढ़ाए।
• भोग लगाने के थोड़ी देर पश्चात भगवान को प्रणाम करके भोग दिया जाता है।
• शाम की पूजा के बाद तुलसी जी के आगे घी का दीपक अवश्य ही जलाया जाता है ताकि इससे तुलसी जी को प्रसन्न किया जा सके। ऐसी मान्यता है कि तुलसी जी के प्रसन्न होने पर भगवान विष्णु भी प्रसन्न होते हैं।
• इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराया जाता है और उन्हें दान-दक्षिणा देने के पश्चात भोजन ग्रहण किया जाता है।
कामदा एकादशी व्रत के दिन ध्यान रखने वाली बातें:-
• कामदा एकादशी के दिन सूर्यास्त के पश्चात भोजन ग्रहण नहीं करना चाहिए।
• भगवान विष्णु को भोग लगाते समय तीखी चीजों का इस्तेमाल ना करें और भगवान को सादा भोग लगाए एवं मीठे पकवान भोग में जरूर से रखे।
• कामदा एकादशी के दिन भूले-भटके भी चावल का सेवन ना करें क्योंकि ऐसा माना जाता है कि इस दिन चावल का सेवन करने वाले व्यक्ति अगले जन्म में रेंगने वाले जीव के रूप में जन्म लेते हैं।
• साथ ही इस दिन किसी भी प्रकार के खाने में प्याज और लहसुन का प्रयोग बिल्कुल भी ना करें और पूरे तरीके से सात्विक आहार ले।
• इस दिन ऊंचे स्वर में बोलने से बचना चाहिए और अपशब्द नहीं कहना चाहिए।
• कामदा एकादशी के दिन पति-पत्नी को प्रेम भाव से रहना चाहिए और आपस में झगड़ा नहीं करना चाहिए।
• कामदा एकादशी के दिन दान करने का विशेष महत्व है इसलिए इस दिन तिल और फलों का दान करना चाहिए।
• कामदा एकादशी के दिन गंगा स्नान करने का भी विशेष महत्व है इसलिए इस दिन संभव हो तो गंगा स्नान भी कराना चाहिए।
• कामदा एकादशी के दिन गौमाता को हरा चारा अवश्य खिलाना चाहिए।
• यदि किसी व्यक्ति के विवाह होने में देरी हो रही है तो इस दिन उस व्यक्ति को केसर, केला, गुड़ और चने की दाल दान करनी चाहिए।
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