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मिथुन राशि (Mithun Rashi) में जन्म लेने वाले लोग आकर्षक होते हैं। इस राशि का चिन्ह जुड़वां और द्वीस्वभाव होने के कारण ये बहुमुखी भी होते हें। मिथुन राशि के लोग मिलनसार प्रवृति के होते हैं और इन्हें कला से ज्यादा भौतिक ज्ञान के क्षेत्र से लगाव होता है। इस राशि के लोगों में जिज्ञासा बहुत होती है और इनकी हाजिर जवाबी भी बेहतरीन होती है। इस राशि के लोगों को संगती का जल्द असर होता है। बुरे के साथ ये बुरा और अच्छे के साथ अच्छा बन जाते हैं। इसलिए कई बार बिना सोचे समझे दोस्त बनाना मिथुन राशि (Gemini) के जातकों के लिए नुकसानदेह भी हो जाता है। इस राशि के लोगों के लिए शुभ रंग पाला और नीला माना गया है। राशि चक्र और तारामंडल में मिथुन राशि के ग्रह-नक्षत्र की क्या स्थिति होती है आइए बताएं।
मिथुन राशि (Gemini) को राशि चक्र और तारामंडल में तीसरे स्थान पर रखा गया है। पश्चिम दिशा में वास करने वाला मिथुन राशि शीर्षोदयी राशि है। तारामंडल में इस राशि का प्रारंभ 61 डिग्री से लेकर 90 डिग्री के अंतर्गत होता है। मिथुन राशि की आकृति सत्री पुरुष के समान रखी गई है। मिथुन राशि द्वीस्वभाव संज्ञक तथा क्रूर प्रकृति का माना गया है। इस राशि को वायु तत्व कहा गया है तथा इसका स्वामी बुध और वर्ण हरा है। कालपुरुष के शरीर में मिथुन राशि का सथान स्तन मध्य कहा गया है। इस राशि का निवास स्थान जुआ, रति, विहारभूमि और वो भूमिसथल जहां निवास किया जा सकता है, माना गया है। इस राशि को पुरुष लिंग सम और क्रू राशि माना गया है।
मिथुन राशि (Gemini) के दो होरा होती है। पहली होरा 15 अंश का और दूसरी होरा 15 अंश का। दोनों को मिलाकर यह राशि के कुल 30 अंश पूरा करती है। पहले होरा का स्वामी सूर्य, दूसरे होरा का स्वामी चंद्रमा है। द्रैष्काण तीन हैं और एक द्रैष्काण 10 डिग्री का है। 10-10 द्रैष्काण मिलाकर तीनों द्रैष्काण तीन डिग्री की पूरी राशि बनाते हैं। मिथुन राशि के प्रथम द्रैष्काण का स्वामी बुध, दूसरे का शुक्र, तीसरे का शनि होता है। इस राशि के सात सप्तमांश होते हैं। पहले सप्तमांश का स्वामी बुध, दूसरे का चंद्र, तीसरे का सूर्य, चौथे का बुध, पांचवे का शुक्र, छठे का मंगल, सातवें का स्वामी बृहस्पति माना गया है।
मिथुन राशि के नौ नवमांश होते हैं। एक नवमांश 3 अंश का और 20 विकला का होता है। पहले नवमांश का स्वामी शुक्र, दूसरे नवमांश का स्वामी मंगल, तीसरे का बृहस्पति, चौथे का शनि, पांचवे का भी शनि, छठे का बृहस्पति, सातवें का मंगल, आइवें का शुक्र, नौवें का बुध स्वामी है। मिथुन राशि (mithun rashi) के दशमांश 10 हैं। हर एक दशमांश 3-3 अंश का होता है। मिथुन राशि के पहले दशमांश का स्वामी बुध, दूसरे का चंद्र, तीसरे का सूर्य, चौथे का बुध, पांचवे का शुक्र, छठें मंगल, सातवें का बृहस्पति, आठवें का शनि, नौवें का शनि और दसवें का स्वामी बृहस्पति कहा गया है।
मिथुन राशि के 12 द्वादशांश हैं जिनमें प्रत्येक द्वादशांश 2 अंश और 30 कला का माना गया है। राशि के पहले द्वादशांश का स्वामी बुध, दूसरे का चंद्र, तीसरे का सूर्य, चौथे का बुध, पांचवे का शुक्र, छठे का मंगल, सातवें का बृहस्पति, आइवें का शनि, नौवें का भी शनि, दसवें का स्वामी बृहस्पति, ग्यारहवें का मंगल और बारहवें का स्वामी शुक्र होता है। 16 षोडशांश हैं जिसमें एक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला का है। पहले षोडशांश का स्वामी बृहस्पति, दूसरे का शनि, तीसरे का शनि, चौथे का बृहस्पति, पांचवे का मंगल, छठे का शुक्र, सातवें का बुध, आठवें का चंद्र, नौवें का सूर्य, दसवें का स्वामी बुध, 11वें का शुक्र, 12वें का मगल, 13वें का बृहस्पति 14वें का शनि, 15वें का भी शनि, 16वें का बृहस्पति स्वामी होता है।
इसी क्रम में मिथुन राशि के पांच त्रिशांश होते हैं। पहला त्रिशांश 5 अंश का और इसके स्वामी मंगल होता है। दूसरा त्रिशांश भी 5 अंश का है, इसका स्वामी शनि, तीसरा त्रिशांश 8 अंश का और स्वामी बृहस्पति है। चौथा त्रिशांश 7 अंश का और इसका स्वामी बुध, पांचवा त्रिशांश 5 अंश का है और इसका स्वामी शुक्र है।
अब हम आते हैं मिथुन राशि (Mithun rashi) के षष्ट्यंस की ओर। मिथुन राशि (Gemini) के 60 षष्ट्यंस होते हैं। एक षष्ट्यंस 30 कला अर्थात आधा अंश का माना गया है। हर एक का स्वामी अलग-अलग है। ये हैं इनके स्वामी। पहला षष्ट्यंस का स्वामी घोर, दूरे का राक्षस, तीसरे का देव, चौथे का कुबेर, पांचवे का यक्ष, छठे का किन्नर, 7वें का भ्रष्ट, 8वें का कुलघ्न, 9वें का गरल, 10वें का अग्नि, 11वें का माया, 12वें का यम, 13वें का वरुण, 14वें का इंद्र, 15वें का कला, 16वें का सर्प, 17वें का अमृत, 18वें का चंद्र, 19वें का मिर्दु, 20वें का कोमल, 21वें का पद, 22वें का विष्णु, 23वें का वागीश, 24वें का दिगंबर, 25वें का देव, 26वें का आर्द्र, 27वें कलिनाश, 28वें क्षितिज, 29वें का मलकर, 30वें का मन्दात्मज, 31वें का मृत्यु, 32वें का काल, 33वें का दावाग्नि, 34वें का घोर, 35वें का अधम, 36वें का कंटक, 37वें का सुधा, 38वें का अमृत, 39वें का पूर्णचंद्र, 40वें का विश्दाग्ध, 41वें का कुलनाश, 42वें का मुख्या, 43वें का वन्शछय, 44वें का उत्पात, 45वें का कालरूप, 46वें का सौम्य, 47वें का मृदु, 48वें का सुशीतल, 49वें का दृष्टकाल, 50वें का इन्दुमुख, 51वें का प्रवीण, 52वें का कालाग्नि, 53वें का दंडायुत, 54वें का निर्मल, 55वें का शुभ, 56वें का अशुभ, 57वें का अतिशित, 58वें का सुधासयो, 59वें का भ्रमण, 60वें का इन्दुरेखा स्वामी है। जितने भी षष्ट्यंस हैं सभी अपने नाम के अनुसार मिथुन राशि के जातकों को शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं। इनके नाम के अनुसार ही जातकों को अपने कर्म मिलते हैं। अत: राशि के इन स्वामी की भूमिका अहम मानी जाती है।
मिथुन राशि के सत्ताइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण मृगशिरा से पुनर्वसु तक जिसमें कि मृगशिरा नक्षत्र के दो चरण जिसके वर्ण अक्षर हैं। मृगशिरा 3 का, 4 की, आर्द्रा 1 कु, 2 घ, 3 ङ, 4 छ, पुनर्वसु 1 के, 2 को, 3 हा कुल मिलाकर ये नौ चरण मिथुन राशि के हैं। हर एक चरण 3।20 डिग्री का है। मिथुन राशि के सभी चरणों के स्वामी बुध के साथ अलग-अलग होते हैं। मिथुन राशि रात्रिबली भी कहा जाता है क्योंकि ये रात्रि पहर में सबसे ताकतवर होता है। मिथुन राशि के जातक रात के समय अधिक बलवान और शक्तिशाली होते हैं।
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