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सिंह राशि (Leo) के लोगों नाम के अनुरूप ही साहसी, निडर और आत्मविश्वास से संपन्न होते हैं। इस राशि के लोग हमेशा ऊर्जावान होते हैं। सिंह राशि के लोग भरोसेमंद और हमेशा साथ निभाने वाले मित्र होते हैं। मेहनत करने से ये लोग कभी पीछे नहीं हटते। सिंह राशि के मनुष्यों की पहचान अलग ही होती है। उनके चेहरे पर अलग सा तेज देखा जात सकता है। इस राशि के लोग मनोरंजन के क्षेत्र में अधिक लगाव रखते हैं। इनमें लीडरशिप अर्थात नेतृत्व का गुण होता है। इस राशि के लोगों के लिए पीला और आसमानी रंग शुभ माना जाता है।
राशि चक्र और तारामंडल में सिंह राशि के नक्षत्रों और ग्रहों की स्थिति कुछ ऐसी है।
सिंह राशि (Leo) का तारामंडल और राशि चक्र में पांचवा स्थान है। सिंह राशि पूर्व दिशा में वास करने वाली शीर्षोदयी राशि है। सिंह राशि का प्रारंभ 121 डिग्री से लेकर 150 डिग्री के अंदर होता है। सिंह राशि का स्वरूप शेर की आकृति का रखा गया है। यह राशि स्थिर संज्ञक तथा क्रूर प्रकृति की अग्नि तत्व की कही गई है। सिंह राशि का स्वामी समस्त ग्रहों के स्वामी सूर्य है। इसका वर्ण श्वेत है। कालपुरुष के शरीर में सिंह राशि का स्थान उदर (पेट) प्रदेश कहा गया है। इसका निवास स्थान घने पहाड़, जंगल, गुफा है। यह राशि पुरुष लिंग, दीर्घ और क्रूर राशि है।
सिंह राशि (Leo) के दो होरा होती है। पहली होरा 15 अंश की और दूसरी होरा भी 15 अंश की है, जो कि कुल मिलाकर 30 हो जाती है। पहली होरा के स्वामी सूर्य और दूसरी होरा के स्वामी चंद्रमा है। इसी तरह अब बात करते हैं सिंह राशि के द्रैष्काण की। सिंह राशि के तीन द्रैष्काण है जिनमें हर एक द्रैष्काण 10 डिग्री की है। दस-दस डिग्री के तीनों द्रैष्काण तीस डिग्री की पूरी राशि बनाते हैं। पहले द्रैष्काण का स्वामी सूर्य और दूसरे का स्वामी बृहस्पति है और तीसरे द्रैष्काण का स्वामी मंगल है।
सिंह राशि के 7 सप्तमांश होते हैं। पहला सप्तमांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शनि और सातवें का स्वामी भी शनि कहा गया है।
अब बारी आती है सिंह राशि के नवमांश की। एक नवमांश 3 अंश का और 20 विकला का होता है। सिंह राशि के पहले नवमांश का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्रमा, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल, नौवें का स्वामी बृहस्पति माना गया है। इसी तरह सिंह राशि के10 दशमांश होते हैं। प्रत्येक दशमांश 3 अंश के होते हैं। पहले दशमांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का स्वामी बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शनि, सातवें का भी शनि, आठवें का बृहस्पति, नौवें का मंगल, दसवें का स्वामी शुक्र है।
सिंह राशि के 12 द्वादशांश होते हैं। प्रत्येक द्वादशांश 2 अंश और 30 कला के हैं।सिंह राशि (Leo) के पहले द्वादशांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शनि, सातवें का भी शनि, आठवें का बृहस्पति, नौवें का मंगल, दसवें का स्वामी शुक्र, ग्यारहवें का बुध, बारहवें का स्वामी चंद्र है।
इसी तरह 16 षोडशांश हैं। प्रत्येक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला का होता है। सिंह राशि के पहले षोडशांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शनि, सातवें का भी शनि, आठवें का बृहस्पति, नौवें का मंगल, दसवें का शुक्र, ग्यारहवें का बुध, बारहवें का चंद्र, तेरहवें का सूर्य, चौदहवें का बुध, पंद्रहवें का शुक्र और सोलहवें का स्वामी मंगल माना गया है।
इस क्रम में सिंह राशि के पांच त्रिशांश होते हैं। पहला त्रिशांश 5 अंश का है और इसका स्वामी मंगल है। दूसरा त्रिशांश 5 अंश और स्वामी शनि, तीसरा त्रिशांश 8 अंश और स्वामी बृहस्पति है, चौथ त्रिशांश 7 अंश और स्वामी बुध, पांचवा त्रिशांश 5 अंश और स्वामी शुक्र है।
अब आते हें सिंह राशि (Singh Rashi) के 60 षष्ट्यंस पर। एक षष्ट्यंस 30 कला अर्थात आधा अंश का होता है। इनके स्वामी कुछ इस तरह हैं। पहला षष्ट्यंस का स्वामी घोर, दूसरे का राक्षस, तीसरे का देव, चौथे का कुबेर, पांचवे का यक्ष, छठे का किन्नर, 7वें का भ्रष्ट, 8वें का कुलघ्न, 9वें का गरल, 10वें का अग्नि, 11वें का माया, 12वें का यम, 13वें का वरुण, 14वें का इंद्र, 15वें का कला, 16वें का सर्प, 17वें का अमृत, 18वें का चंद्र, 19वें का मिर्दु, 20वें का कोमल, 21वें का पद, 22वें का विष्णु, 23वें का वागीश, 24वें का दिगंबर, 25वें का देव, 26वें का आर्द्र, 27वें का कलिनाश, 28वें का क्षितिज, 29वें का मलकर, 30वें का मन्दात्मज, 31वें का मृत्यु, 32वें का काल, 33वें दावाग्नि, 34वें का घोर, 35वें का अधम, 36वें का कंटक, 37वें का सुधा, 38वें का अमृत, 39वें का पूर्णचंद्र, 40वें का विश्दाग्ध, 41वें का कुलनाश, 42वें का मुख्या, 43वें का वन्शछय, 44वें का उत्पात, 45वें का कालरूप, 46वें का सौम्य, 47वें का मृदु, 48वें का सुशीतल, 49वें का दृष्टकराल, 50वें का इन्दुमुख, 51वें का प्रवीण, 52वें का कालाग्नि, 53वें का दंडायुत, 54वें का निर्मल, 55वें का शुभ, 56वें का अशुभ, 57वें का अतिशित, 58वें का सुधासयो, 59वें का भ्रमण, 60वें का इन्दुरेखा स्वामी है। नाम के अनुसार सभी षष्ट्यंस शुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं।
सिंह राशि में सम्माइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण मघा से उत्तर्फाल्गुनी तक, जिसमें की मघा नक्षत्र के चार चरण जिसके वर्ण अक्षर हैं। मघा 1 मा, 2 मी, 3 मू, 4 में, पूर्वाफाल्गुनी 1 मो, 2 टा, 3 टी, 4 टू, उत्तराफाल्गुनी 1 टे है। ये सब मिलाकर नौ चरण सिंह राशि के हैं और प्रत्येक चरण 3।20 डिग्री का है। प्रत्येक चरणों के नक्षत्र स्वामी सूर्य के साथ अलग-अलग होते हैं। मालूम हो कि सिंह राशि दिन के समय सबसे बलशाली होता है। इस कारण इसे दिनबली राशि माना गया है। दिन के समय सिंह राशि के जातक अपने कार्य में सबसे ज्यादा सक्षम होते हैं।
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