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तुला राशि (Libra) का स्थान राशि चक्र और तारामंडल में सातवें स्थान पर है। तुला राशि का वास स्थान पश्चिम दिशा की ओर है तथा इसे शीर्षोदयी राशि भी कहा जाता है। तारामंडल में इस राशि का प्रारंभ 181 डिग्री से लेकर 210 डिग्री के भीतर होता है। तुला राशि की आकृति तराजू लिए हुए व्यक्ति के समान मानी गई है। यह चर राशि संज्ञक और क्रूर प्रकृति के वायु तत्व की मानी गई है। तुला राशि का स्वामी शुक्र स्वामी है। वर्ण नील है। कालपुरुष के शरीर में मुला राशि का स्थान नाभि के निचले स्थान पर माना गया है। Tula rashi का निवास स्थान समस्त धन एवं सार के निरूपण भूमि में है। तुला राशि पुरुष लिंग, दीर्घ और क्रूर राशि मानी गई है।
सभी राशियों के समान तुला राशि (Tula Rashi) के भी दो होरा हैं। पहली होरा 15 अंश और दूसरी होरा भी 15 अंश के हैं। पहली होरा के स्वामी सूर्य और दूसरी होरा के स्वामी चंद्रमा हैं। इसी तरह तुला राशि के तीन द्रैष्काण कहे गए हैं। एक द्रैष्काण हमेशा दस डिग्री का होता है। इस तरह तीनों द्रैष्काण तीस डिग्री की पूरी राशि आ जाती है। तुला राशि के प्रथम द्रैष्काण का स्वामी शुक्र, दूसरे द्रैष्काण का स्वामी शनि और तीसरे द्रैष्काण का स्वामी बुध है।
अब आते हैं तुला राशि के सप्तमांश पर। तुला राशि (Libra) के 7 सप्तमांश हैं। पहले सप्तमांश का स्वामी शुक्र, दूसरे का मंगल, तीसरे का बृहस्पति, चौथे का शनि, पांचवे का भी शनि, छठे का बृहस्पति और सातवें का स्वामी मंगल कहा गया है।
इस कड़ी में तुला राशि के 9 नवमांश हैं। एक नवमांश 3 अंश और 20 विकला से संपूर्ण होते हैं। पहले नवमांश का स्वामी शुक्र, दूसरे का मंगल, तीसरे का बृहस्पति, चौथे का शनि, पांचवे का भी शनि, छठे का बृहस्पति, सातवें का मंगल, आठवें का शुक्र, नौवें का बुध कहा गया है। इसी प्रकार से तुला राशि (Tula Rashi) के 10 दशमांश होते हैं। प्रत्येक दशमांश 3 अंश के हैं। पहले दशमांश का स्वामी सूर्य, दूसरे का बुध, तीसरे का शुक्र, चौथे का मंगल, पांचवे का बृहस्पति, छठे का शनि, सातवें का भी शनि, आठवें का बृहस्पति, नौवें का मंगल और दसवें का स्वामी शुक्र माना गया है।
इसी प्रकार तुला राशि (Tula Rashi) के 12 द्वादशांश हैं। प्रत्येक द्वादशांश 2 अंश और 30 कला से लिप्त हैं। पहले द्वादशांश का स्वामी शुक्र, दूसरे का मंगल, तीसरे का बृहस्पति, चौथे का शनि, पांचवे का भी शनि, छठे का बृहस्पति, सातवें का मंगल, आठवें का शुक्र, नौवें का बुध, दसवें का स्वामी चंद्र, ग्यारहवें का सूर्य और बारहवें का स्वामी बुध है। इसी तरह सप्तमांश, नवमांश, द्वादशांश की तरह तुला राशि के 16 षोडशांश हैं। एक षोडशांश 1 अंश, 52 कला और 30 विकला का होता है। पहले षोडशांश का स्वामी मंगल, दूसरे का शुक्र, तीसरे का बुध, चौथे का चंद्र, पांचवे का सूर्य, छठे का बुध, सातवें का शुक्र, आठवें का मंगल। नौवें का बृहस्पति, दसवें का शनि, ग्यारहवें का भी शनि और बारहवें का स्वामी बृहस्पति, तेरहवें का मंगल, चौदहवें का शुक्र, पंद्रहवें का बुध और सोलहवें का स्वामी चंद्र होता है।
इसी क्रम में तला राशि के 5 त्रिशांश होते हैं। पहला त्रिशांश 5 अंश का और इसका स्वामी मंगल है। दूसरा त्रिशांश भी 5 अंश का तथा इसका स्वामी शनि है। तीसरा त्रिशांश 8 अंश का और इसका स्वामी बृहस्पति, चौथा त्रिशांश 7 अंश और इसका स्वामी बुध, पांचवा त्रिशांश 5 अंश का और इसका स्वामी शुक्र है।
इसकी तरह तुला राशि (Libra) के 60 षष्ट्यंस होते हैं। एक षष्टयंस 3; कला अर्थात आधा अंश होता है। इनके स्वामी कुछ इस प्रकार हैं। पहला घोर, दूसरा राक्षस, तीसरा देव, चौथा कुबेर, पांचवा यक्ष, छठां किन्नर, सातवां भ्रष्ट, आठवां कुलघ्न, नौवों गरल, दसवां अग्नि, 11वां माया, 12वां यम, 13वां वरुण, 14 इंद्र, 15वां कला, 16वां सर्प, 17वां अमृत, 18वां चंद्र, 19वां मिर्दु, 20वां कोमल, 21वां पद, 22वां विष्णु, 23वां वागीश, 24वां दिगंबर, 25वां देव, 26वां आर्द्र, 27वां कलिनाश, 28वां क्षितिज, 29वां मलकर, 30वां मन्दात्मज, 31वां मृत्यु, 32वां काल, 33वां दावाग्नि, 34वां घोर, 35वां अधम, 36वां कंटक, 37वां सुधा, 38वां अमृत, 39वां पूर्णचंद्र, 40वां विश्दाग्ध, 41वां कुलनाश, 42वां मुख्या, 43वां वन्छान्य, 44वां उत्पात, 45वां कालरूप, 46वां सौम्य, 47वां मृदु, 48वां सुशीतल, 49वां दृष्टकाल, 50वां इन्दुमुख, 51वां प्रवीण, 52वां कालाग्नि, 53वां दंडायुत, 54वां निर्मल, 55वां शुभ, 56वां अशुभ, 57वां अतिशित, 58वां सुधासयो, 59वां भ्रमण, 60वां इन्दुरेखा। कुल मिलाकर ये 60 षष्ट्यंस अपने नाम के मुताबिक जातकों को श1ुभ और अशुभ फल प्रदान करते हैं।
तुला राशि (Libra) में सत्ताइस नक्षत्रों के 108 चरणों में कुल नौ चरण चित्रा से विशाखा तक हैं। जिसमें कि चित्रा नक्षत्र के दो चरण जिसके वर्ण अक्षर हैं। विशाखा 1 रा, 2 री, स्वाति 1 रु, 2 रे, 3 रो, 4 ता, विशाखा 1 ती, 2 तू, 3 ते कुल मिलाकर के ये नौ चरण तुला के हैं और प्रत्येक चरण 3।20 डिग्री के होते हैं। सभी चरणों के नक्षत्र स्वामी भी शुक्र के साथ अलग होते हैं। तुला राशि दिन के समय सबसे अधिक बलशाली होता है और अत: इसे दिनबली राशि भी कहा जाता है।
मां स्कंदमाता की गोद में भगवान स्कंद बैठे रहते हैं, इसलिए उन्हें 'स्कंदमाता' कहा जाता है।...
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